नई दिल्ली। बैंकों से कर्ज लेकर न लौटाने वालों के अब होश उडऩे वाले हैं। सरकारें सार्वजनिक बैंकों के फंसे भारी-भरकम कर्जे पर मूकदर्शक बनी रही हैं। अब जबकि देश की शीर्ष अदालत ने बड़े कर्जखोरों की सूची मांगी है तो उम्मीद जगी है कि बैंकों के डूबे कुछ कर्जों की वापसी होगी।
दरअसल, बैंकों की कोताही, राजनेताओं व बड़े औद्योगिक घरानों की मिलीभगत से इतना बड़ा कर्ज फंसा है कि बैंकों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई हैं। बैंकों ने पिछले तीन सालों की अवधि के एक लाख चौदह हजार करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाले हैं। इस धनराशि की लौटने की उम्मीद नहीं थी। इसके वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक और बढऩे की आशंका है।
सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले एक ऐतिहासिक फैसले में 500 करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज लेकर नहीं लौटाने वाले सभी ग्र्राहकों के नाम सौंपने का निर्देश बैंकों को दिया है। इस निर्देश की गूंज बैंकों से लेकर उद्योग चैंबर तक में सुनाई दे रही है। वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक भी इस फैसले के दूरगामी असर की समीक्षा करने में जुटा है।
दिल्ली मुख्यालय स्थिति एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन किया जाएगा, लेकिन इसके परिणाम का भी आकलन करना जरूरी है। कोर्ट ने 500 करोड़ रुपये से ज्यादा बकाये वाले कर्जदार, जो जानबूझकर वापस करने में टालमटोल कर रहे हैं, उनके नाम भेजने को कहा है। मोटेतौर पर देश के बहुत ही कम ऐसे उद्योग समूह होंगे, जिनकी किसी न किसी कंपनी पर एनपीए बकाया न हो। इन कंपनियों के नाम सामने आने से इनकी साख पर असर पड़ेगा।
इस आशंका के मद्देनजर कंपनियां बैंकों से संपर्क साध रहे हैं कि उनके नाम का खुलासा नहीं किया जाए। फिलहाल, बैंकों के लिए भी स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण है। मामले को जल्द ही वित्त मंत्रालय के सामने रखा जाएगा। इस बारे में रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के निर्देश के अनुसार कदम उठाया जाएगा।
दरअसल, जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले ग्र्राहकों को लेकर बैंक अभी तक काफी दोहरी नीति अपनाते रहे हैं। 60 हजार और 70 हजार रुपये का कर्ज नहीं लौटाने वाले ग्र्राहकों के नाम तो शहर के चौक पर चस्पा कर दिए जाते हैं, लेकिन हजारों करोड़ रुपये नहीं लौटाने वाले ग्राहकों के नाम बैंक नहीं बताते। अगर किसी का नाम सामने आता है तो उससे कर्ज वसूलने में काफी कोताही बरती जाती है। किंगफिशर एयरलाइंस का नाम सामने है।
सरकारी क्षेत्र के 19 बैंकों ने इसे 7000 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है लेकिन इसे वसूल नहीं पाये हैं। बड़े कर्जधारकों पर बकाये ब्याज आदि की राशि कई बार माफ कर दी जाती है और इस राशि को बट्टेखाते में डाल दिया जाता है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2013-2015 के बीच 1.14 लाख करोड़ रुपये की राशि बट्टे खाते में डाले गये हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद यह खुलासा होगा कि किस कंपनी पर बकाये कर्ज की राशि को बट्टे खाते में डाला गया है।
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